Saturday, February 14, 2009

उम्मीद



आज यूँ हम ज़मीन पर आ गिरे,

जैसे उडे ही थे कभी।

चूर हो गए है ख्वाब सारे,

जैसे ख्वाब देखे ही न थे कभी।

सेहरा-ऐ-दिल लिए फिरते है मारे,

न-उम्मीद सी बोझल आँखे भी,

धड़कने कैद है इन साँसों के हवाले,

वरना जिस्म और जान कही।

जीना तो चाहते है अब भी मगर,

वजह बतादे कोई....

यूँ सिसक कर जीना लगे है ऐसे,

जैसे जिंदा ही न थे कभी...


-निशिता चौधरी।

Friday, February 13, 2009

प्रहरी



उमड़ कर आते हैं बादल, जिनका उसको डर नहीं,

आंधी हो, तूफ़ान हो, शौर्य वो डिगता नहीं।

आती है बस छूकर ही, उस तन से 'गर हवा कही,

कांपते हैं होंसले और फैसले अमल नहीं।

आते है फिरभी मिलाने खाख में जीवन कई,

तू भी न बच पायेगा, सांस लेना तेरा मुमकिन नहीं।

लौट जा की तेरा अब वक़्त यह लगता नहीं,

जीत कर गया नहीं कोई, यह ज़मीन है वही।

और मैं हूँ वोह प्रहरी, यही धर्म मेरा अजल्सेही।



- निशिता चौधरी।

'Man'

It is not easy to be a woman.. Centuries after centuries women are being subjected to enormous amount of atrocities. From making them sex s...