
आज यूँ हम ज़मीन पर आ गिरे,
जैसे उडे ही न थे कभी।
चूर हो गए है ख्वाब सारे,
जैसे ख्वाब देखे ही न थे कभी।
सेहरा-ऐ-दिल लिए फिरते है मारे,
न-उम्मीद सी बोझल आँखे भी,
धड़कने कैद है इन साँसों के हवाले,
वरना जिस्म और जान कही।
जीना तो चाहते है अब भी मगर,
वजह बतादे कोई....
यूँ सिसक कर जीना लगे है ऐसे,
जैसे जिंदा ही न थे कभी...
-निशिता चौधरी।